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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૮૦ विविध वर्ण विभूषित विग्रहा, विहित दुर्दम दर्शक निग्रहाः ॥ युगार्कमिताः सुकृताकरा, जिनवराः मभवन्तु शिवङ्कराः ॥ २॥ -रुचि वर्ण निबद्धर्मानन्दितं; सुमनसां प्रकरैरभि वन्दितं ॥ निखिल - साधुजनाः खलु नीमिदं, जिनमतं नमतां चित्तशर्मदं ॥ ३ ॥ सकळ भव्य सरोज विकाशिका, कुमति सन्तमसोच्चय नाशिका | जिन वराननपद्मगतान्सुदा, भवतु वाग्जिन लाभ शुभार्थदा ॥ ४ ॥ ॥ इति पार्श्वजिन स्तोत्रम् ॥ ॥ गौडी पार्श्वजिन स्तोत्रम् ॥ श्रीमत्पार्श्व जिनेश्वरस्य विलसद् ज्ञाना मृताम्मे निधेः ॥ सद्भावेनं पर स्वरूप विरते मुक्तवास्पदे तस्थुषः || सद्भूत प्रति तस्तु सुतरां गौडी पुरोद्वासिनः सेोल्लासं प्रणिपत्य सत्य - मनसा तत्रैव नित्यं स्मरे ॥ १ ॥ यत्पादाम्बुजदर्शनोत्सुकषियों सव्या व्रजन्तोऽद्वनिस्पृश्यन्ते नहि दुष्ट जन्तुनिवर्वन्यैर्नवा तस्करैः।। नैवा ज्वाल दवानले जलचरा कीर्णे जलैर्जातुनो । सः श्रीपा विचिन्त्य महिमा दृइये। न केषां भवेत् ॥ २ ॥ हित्वान्तः करणाद्भुतं कुटिलतां मोहादिनोद्भावितां, घृत्वा निर्मल भावन च विधिना यद्भक्तिमा तन्विता । लभ्यन्ते नरराज निर्जर वरश्रेणी सुखानिक्रमा, मुक्ति श्रीरपि सैव शुद्ध मनसा संसेव्यत विश्वपाः ॥ ३ ॥ ॥ इति श्री गौडी पार्श्वजिन स्तोत्रम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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