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________________ । २० ) वास, बहु पामे नही लील विलास ॥ न० ॥ ४ ॥ जाणी रे प्राणी लान अनंत, सेवो सुखदायक ए मंत ॥ ज० ॥ उत्तमसागर पंमित शिष्य, सेवे कांतिसागर निशदीस ॥ न ॥ ५॥ इति चतुर्थस्तवनं ॥ ४ ॥ ॥ अथ पंचम स्तवनं ॥ ॥ नवियां श्रीसिदचक अाराधो, तुमें मुक्ति मार गर्ने साधो, इह नर ना उर्लन लाधो हो जात । ॥ नवपद जाए जपीजें ॥त्रण टंक देव बांदी जें, त्रिदुं कालें जिन पूजीजें, आंबिल तण नव दिन कीजें हो लाल ॥ २० ॥ ५ ॥ हदि यासोचे त्रज मासे, तप सातमथी अन्यामें, पद मेव्यां पा तक नासे हो लाल ॥न ॥ ३ ॥ मयगाने नृप श्रीपालें, आराध्यो मंत्र नजमालें, एह दुःख दोह गनें टाले हो लाल ॥ न ॥ ४ ॥ एहनी जे सेवा सारे, तस मयगल गाजे बारें, इति मीति अनीति निवारे हो साल ॥ ना ॥ ५॥ मिथ्यात्व विकार अनिष्ट, क्य जाये दोषी उष्ट, इणे सेव्या समकित पुष्ट हो लाल ॥ न० ॥ ६ ॥ जसवंत जिनंसु साखें, नवि सिहचकना गुण नांखे, ते ज्ञान विनोद रस चाखे हो लाल ॥ न ॥ ७ ॥ इति ॥ ५ ॥ ॥अथ षष्ठस्तवनं ॥ ॥ जग जीवन जग वालहो ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीसि चक्र ाराधीयें, शिव सुख फल सह कार लाल रे ॥ ज्ञानादिक त्रण रत्ननु, तेज चढा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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