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________________ (१७) तेहनी थाय || श्रा० ॥ श्रीसिचक्र महिमा कह्यो ॥३॥सांनलि सदु नर नार, अाराध्यो नवकार ॥ या ॥ हेज धरी हियडे घj॥चैत्र मासे वली एह. नवपदमु धरो नेह ॥ आ० ॥ पूज्यो ये शिवसुख घj॥ ४ ॥ इणिपरें गौतम स्वाम, नव निधि जेह ने नाम ॥ श्रा॥ नवपद महिमा वखाणीयो॥ उत्तम सागर शिप्य, प्रणमे ते निश दीस ॥ ० ॥ नव पद महिमा जाणीयो॥५॥ इतिहनीयस्तवनं ।। ॥ अथ तृतीय स्तवनं ॥ सीतातो रूपें रूड़ी ॥ए देशी: श्री वीर जिणंद बखाण्यो, तिहां गौतम गणधर जाण्यो हो । नवपद ध्याईयें ॥ श्री श्रीपाल नरेश, मयणाय गु रु उपदेशे हो ॥ नव ॥ ॥ श्रीसि चक आरा ध्यो, तो सयल पदारथ साध्यो हो॥न ॥धासो मा सें कीजें, शुदि सातमे जिन पूजी हो । नव ॥२॥ अष्ट कमल दल थापी, महिमा जस त्रिभुवन व्या पी हो ।। न० ॥ मध्यदलें जिन ध्याने, ध्यावो नवि धवने वाने हो ॥ न॥३॥ पूरव दिशें सि६ बा जे, राते तनु तेज विराजे हो ॥ न० ॥ आचारिज पद त्रीजे, जिम सोवन वान करीजें हो ॥ न ॥४॥ पश्चिम दिश नवझाया, नीले तनु वान. सोहाया हो ॥ न० ॥ साधु सकल घनवानें, उत्तर दिशि ध्यावो ध्याने हो ॥ न०.॥ ५ ॥ नाण अग्नि कोणें ध्यावो, जिम अत्यंत सुख तुमें पावो हो ॥ न ॥ दंसण
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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