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________________ ( ७३६ ) २,१,१,२,१,२,२,१, ए आठमी पंक्ति जाणवी. एपि त वर्ग तपो दिन ए६ ने पारणां चोशठ, सर्व मली मा स पांच ने दिन दश याय. उजमणे जिनपूजा, करवी मोदक १६० ढोकवा. साधु ने संघनुं वात्सव्य करवुं. ७६ परतपालि तपः- पंच वर्ष यावत् श्रीवीरकल्या किथी आरंजी उपवास ऋण करवा. पबी बत्रीग़ नी वी करवी. बेहले उपवास त्रण करवा. वर्ष वर्ष प्रत्ये एक सनी लापसी स्थाले पोलि करीने तेमां विवि ध सुरनि घृत शेर एक प्रदेषीने ढोकj. - ७७ त्रिपर्यंत घन तपः- १,२,३ ए प्रथम पंक्ति २,१, ३. एबीजी पंक्ति, ३, २, १. एत्रीजी पंक्ति १,३.५. ए चोथी पंक्ति, २,३,१. ए पांचमी पंक्ति, ३.१,२. ए बही पंक्ति, १, २, ३ ए सातमी पंक्ति, ३, २,१. ए ग्रामी पंक्ति, २, ३.१. ए नवमी पंक्ति. सरवाजे तप दिन ५४ पारणां २७ सर्व दिन ८१ नजमणे साधु नी नक्ति तथा श्रीसंघनी जक्ति करवी. ७८ लाख पडवे तपः - श्री व ईमानना शिष्य गौत मनुं उपवासादिकें करी आराधन कर. कार्त्तिकशुदि एकमने दिवसें ए तप कर. ते प्रत्येक प्रतिपदायें एकवर्ष पर्यंत करवुं. उजमणामां चोखा माणां पांच ने पाली वे, तथा मग सेई एक ने पाली बे, मठ सेइ एक उपर पाली वे, डद माणां पांच, जवार मां बने पाली वे, गोधूम सेइ वे, चोला से त्रण, चणा से पांच, तिल पाली सात, जब सेई सात,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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