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________________ ( ७३३ ) करीयें, तेवारें ६७ उपवास अने ६३ पारणें मली चार मास ने दश दिवसें ए तप पूर्ण थाय ॥ ६५ बत्रीश कल्याणक तपः - प्रथम एक अहम क रीने पal एकांत बत्रीश उपवास करवा. वली यंत मां एक न करीयें, तेवारें आडत्रीश उपवास य ने चोत्रीश पारणां मली वे महीनाने बार दिवसें ए तप पूर्ण थाथ, उजमणे जिनगृह मध्ये बत्रीश बत्री श वस्तु ढोकवी. ए तप वसुदेवमिमां कयुं ले. ६६ लघुधर्मचक्रवाल तपः- एमां प्रथम एक प्र हम करी पक्षी साडीश एकांतरें उपवास करवा य ने वेडे पण एक ग्रहम करवुं. एम त्रेताली उपवास अने ३० पारणां मली ८२ दिवसें ए तप पूर्ण याय, नजमणे जिनपूजा पूर्वक रौप्य सुवर्णमय धर्मचक्र ढो कवुं, संघनक्ति, साधुदान, ज्ञानपूजा करवी. ६७ एकावलि तपः- दिन ३३४ पारणां ८८. ए त प रत्नावली तपना यंत्रनी पेतें करवुं, पण एटलुं वि शेप जे या आठ बहने स्थानकें चोथ करवी. तथा पदकनी चोत्रीश बहने स्थानकें एकेक उपवास करवो, ए तप शुक्पथी प्रारंभ कराय बे. ६० नवकार पदार मान तपः - प्रथम पढ़ें सात अक्षरना सात उपवास, बीजे पढ़ें पांच, त्रीजे सात, चोथे सात, पांचमे नव, बहे याव, सातमे याठ, या ठमेव, ने नवमे आठ एवं सर्व मली अडराठ उपवास, एकांतरें करवा. नजमणे रूपानां पत्रां उपर
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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