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________________ (७२२) वसें चौद कवल, त्रीजना तेर, एम एकेकनी हानि करतां अमावास्यायें एक कवलनो आहार थाय. फरी अजवालिये पखवाडिये पडवाना दिवसें एक केवल, वोजना वे केवल, जीजे त्रण कवन, एम दिवसें दि चमें एकेका कवलनी क्षि करतां पूर्णिमायें पन्नर कवलनो याहार थाय. एम एक मासें वजमध्य प्र तिमा तप पूर्ण थाय. नुजन रूपानो चंमा अने सोनानुं वज आपq. कक्लनी संख्या प्रमाणे मोदक यापवा. देवपूजा, पुस्तकपूजा अने श्रीसंघy वात्स ल्य व तपमध्ये यथाशक्तियं करवू. ३२ आयंबिल वईमान नामा तप कहे :-प्र यम एक यांविल करीबीजे दिवसें पारण नपवास करे, पबी वे आंबिल उपर एक नपवास पनी त्रण आंबिल पर एक उपवास, पनी चार आंबिल न पर एक उपवास,एम वधतां वधतांबेना एक शो आयं विल करीने तेने पारणे एक उपवास करे. तेवारें सर्व मनी एक शो नपवास थाय, अने पांच हजार ने प चास यायंबिल थाय. ए महातपर्नु आसेवन चौद वर्ष नपर त्रण महीनाने वीश दिवसें पूर्ण थाय. ३३ गुणरत्न संवत्सर नामा तप कहे जेः-ए तपन आसेवन करतां दिवसें नकडू आसनें रहेg, यने रात्रि वीरासने रहे, वस्त्र रहित थर्बु, ए तप शोल मास पर्यंत करवू. तिहां प्रथम महीने एकांतरें नप वास करवा, एटले एकेक उपवास अने उपर पार|
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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