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________________ (७१५) उत्ती जागवी. तथा व सात, पाठ, नव अने पांच, ए चोथी उली जाणवी. तथा आत, नव, पांच, 3 अने सात, ए पांचमी उत्ती जागवी. एम एकेक उत्तीयें पांत्रीश उपवास अने पांच पांच पारणां थाय. तेवार १७५ नपवास थाय. पच्चीश दिवस पारणांना मली बसो दिवसें ए तप पूर्ण थाय ॥ इति ॥ १६ सर्वतोनइ प्रतिमान तप कहे :-एने विषे पांच, ब, सात, आठ, नव, दश अने अगीयार, ए बपन्न नपवासें प्रथम पंक्ति जाणवी. तथा आठ, नव, दश, अगीपार, पांच, ब अने सात, ए बीजी पंक्ति जाणवी; तथा अगीधार, पांच, ब, सात, आठ, न व अने दश, ए त्रीजी पंक्ति जाणवी. तथा सात, आठ, नव, दश, अगीधार, पांच, अने ब, ए चोथी पंक्ति जाणवी; तथा दश, अगीयार, पांच, ब, सात, आठ अने नव, ए पांचमी पंक्ति जाणवी; तथा ब, सात, आठ, नव, दश, अगीधार अने पांच, ए बही पंक्ति जाणवी. तथा नव, दश, अगीयार,.पांच, ब, सात अने आठ ए सातमी पंक्ति जागवी. एमां ए केक पंक्तियें बपन्न बपन्न नपवास अने सात सात पारणां करतां सात उत्तीमा ३ए उपवास तथा ४ए पारणांना दिवस मली ४४१ दिवसें तप पूर्ण थाय. ए नदिक तपने विषे जे पारणां करवां, ते पू वोक्त पांचे तपनी पेरें प्रत्येके जाणवां. अने चतुर्वि धपणुं पण प्रत्येके जाणवू.
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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