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________________ (७१२) त्रण उपवास करवा. एवं करी काहलिकानी नीचे दाडिम पुष्प उत्पन्न थाय . त्यार पड़ी एक उपवा स करीये. पडी बे, त्रण, चार, पांच, ब, सात,यान, नव, दश, अगीयार, बार, तेर, चौद, पन्नर अने शो ल, एवी रीतें एकथी मामीने चडते चडते शोल पर्य त उपवास करवा थकी दाडिमना पुष्पनी नीचें एक सेरिका थाय ने. त्यार पली चोत्रीश अहम एटले चोत्रीश वखत त्रण त्रण नपवास करवा थकी नी चेनुं एक पदक उत्पन्न थाय ने. तेवार पनी वली शोल नपवास, पन्नर, चौद, तेर, बार, अगीयार, दश, नव, आठ, सात, ब, पांच, चार, त्रण, वे अने एक पर्यंत उपवास करवाथकी बीजी बाजुनी सेर थाय ने, तेवार पड़ी वली पाठ अहम करवाथकी बीजा दाडमनां पुष्प उत्पन्न थाय ने, पडी वलीत्रण नपवास, वे उपबास अने एक उपवास करवाथकी बीजी काहलिका उत्पन्न थाय जे. एवा आजूषणाकार थये बते परिपूर्ण रत्नावलीतप सिम थाय ने. ए तपने विषे सर्व मली काहलिकाना तपना दिवस बा र, तथा बे बाजुना दाडिमना पुष्प संबंधि तपना दि वस अडतालीश, तथा बे बाजुनी बे सेर संबंधित पना दिवस २७२ थाय . तथा पदकने विषे चो त्रीश अमना दिवस १०२ ए सर्व एकठा करतां ४३४ दिवस तपना थाय जे. तथा 10 दिवस पार पांना थाय ने, सर्व मली ५२२ दिवसें एक परिपाटी
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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