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________________ (७०३) सामायक विशेष पञ्चरकाण करवू, चारित्रनां उप करण जे उघो, मुहपत्ति,दशी, पडघा प्रमुख ते य थाशक्तियें आपवां,कानस्सग्ग बलोगस्सनो करवो. १२ ‘मो बनवयधारिणं , ए पदनुं गुणगुंबे हजा र गुणीयें तथा नववाड विशुभ त्रिकरण शु करी ब्रह्मचय पालिये, सूधुं शील पालीयें, स्त्री साहामुं दृष्टं पण जोवू नही, विकथा निशा लवी, ब्रह्मव्रत धारकने जमाडवा, तथा य नाश क्तियें वस्त्रादिकनी पहेरामणी करवी, कानस्सग्ग नव लोग्गस्सनो करवो. १३ 'एमो किरियाणं' ए पदनुं गुणणुं बे हजार गुणवू, अहोरात्र खरो पोसह पालवो, निश विकथा न करवी, पारणे गुरुने किरियापुं देवं, कानस्सग्ग पञ्जीश लोगस्सनो करवो. १४ ‘मो तवस्सीएं' ए पदनुं गुणां वे हजार गुणवं, विशेष तप करवू, पारणें सचित्त वस्तु टालवी, तपस्वीनी नक्ति वीसामणा करवी; का नस्सग्ग बार लोगस्सनो करवो. . १५ ‘मो गोयमस्स' ए पदनुं गुणj बे हजार गुणवं, सात दे यथाशक्तिये इव्य खरचवू, गु रुने पडगो वोहोराववो, श्रीगौतमस्वामीनी पूजा वासदेपथी करवी, प्रथम पारणे पडगो पूजीने खीर खांमनुं नोजन करवू, यथाशक्तियें साहामि वात्सल,संघपूजा करवी,तथा अहवीश लब्धि,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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