SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११) जम्यो नर्म नलो रम्यो कर्म नारी, दयाधर्मनीश र्म में नवि विचारी ॥ तोरी नर्मवाणी परम सुरक कारी, त्रिढुंज कना नाथ में नवि संजारी॥ ६ ॥ वि षय वेलडी सेलडी करिय जाणी, नजी मोह तृमा तजी तुऊ वाणी ॥ एहवोनलो नूंमो निज दास जा गी, प्रनु राखीयें बांहिनी बांहि प्राण। ॥ ७ ॥ माहा रा विविध अपराधनी कोडि सहीयें, प्रनु शरण या व्या तए। लाज वहीयें ॥ वली घणी घणी वीनतिए म कहीयें, मुफ मानसरें परम हंस रहीयें ॥ ७ ॥ कल श॥ ए कृपा मूरति पास स्वामी, मुगतिगामी ध्याईयें ॥अति नक नावें विपति जावे, परम संपद पायें। प्रनु महिम सागर गुण विरागर,पास अंतरिक जे स्तवे॥ तस सकल मंगल जय जयारव,आनंद वईन वीनवे ।। ॥ अथ नगवंतनी पूजा करवा समये नवे अं॥ ॥ में तिलक करतां जे पाठ नचारवो, ते कहे ॥ ॥ दोहा ॥ जल नरि संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत ॥ झपन चरण अंगुग्डो, दायक जवजल अंत ॥ १ ॥ जानु बलें कासग्ग रह्या, विचस्या दे श विदेश ॥ खडां खडां केवल लद्यु, पूजो जान नरे श ॥ २ ॥ लोकांतिक वचनें करी, वरस्या वरसी दा न ॥ करकांमे प्रनु पूजना, पूजो नवि बदु मान ॥३॥ मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत ॥ नुजा बलें नवजल तस्या, पूजो खंद महंत ॥ ४ ॥ रत्न त्रयि गुण कजली, सकल सुगुण विशराम ॥ नानि
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy