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________________ (६७) ४६ हीयमान अवधिज्ञा प्रतिपाति अवधिज्ञान अप्रतिपाति अव०४ए जुमति मनःपर्यव झा० ५० विपुलमति मनःपर्यवझानाय नमः ॥ ५१ लोकालोकप्रकाशक श्रीकेवलझानाय नमः॥ ॥ इति एकपंचाशत् झाननेदाः॥ए रीतें एकावन न मस्कार करी ऊना थइ अन्नब उस सिएनो पाठ कही एकावन लोगस्सनो कानस्सग्ग करी प्रगट लो गस्स कही पारीने पनी सर्व पूर्वोक्त करणी करे.इति ॥ ॥अथ अष्टमदिवस विधिप्रारंनः ॥ ॥प्रथम प्रजात संबंधि विधि करीने “नही मो चारित्तस्स" ए पदनु बे हजार गुणगुं गुणे,अने चारित्र पद उज्ज्वलवर्णेने, माटे तंउलनु आयंबिल करे,तथा सित्तेर नेदना सित्तेर नमस्कार करे, ते कहे . १ प्राणातिपात विरमण रूप चारित्राय नमः ।। २ मृषावादविरमणरूपचारित्राय नमः ॥ ३ अदत्तादानविरमणरूपचारित्राय नमः॥ ४ मैथुनविरमणरूपचारित्राय नमः॥ . ५ परिग्रहविरमणरूपचारित्राय नमः ॥ ६ माधर्मरूपचारित्राय नमः॥ ७ आर्यवधर्मरूपचारि० मृताधर्मरूपचारिक ए मुक्तिधर्मरूपचारि० १० तपोधर्मरूपचारि० ११ संयमधर्मरूपचारि० १२ सत्यधर्मरूपचारिक १३ शोचधर्मरूपचारि० १४ अकिंचनधर्मरूपचारिक
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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