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________________ (६७२) २५ अनित्यनावनानावकाय श्रीश्राचार्याय नमः॥ २६ अगरगनावनानावकाय श्रीयाचार्याय नमः। २७ संसारस्वरूपनावनानावकाय श्रीअाचार्याय २७ एकत्वस्वरूपनावनानावकाय श्रीश्राचार्याय शए अन्यत्वनावनावकाय श्रीप्राचार्याय नमः॥ ३० अशुचिनावनागवकाय श्रीधाचार्याय नमः। ३१ आश्रवनावनानावकाय श्रीप्राचार्याय नमः ॥ ३२ संवरनावनानावकाय श्रीश्राचार्याय नमः। ३३ निर्जरानावनानावकाय श्रीयाचार्याय नमः ॥ ३४ लोकस्वरूपनावनावकाय श्रीप्राचार्याय ३५ बोधिउर्जननावना वकाय श्रीधाचार्याय ॥ ३६ धर्मउलेननावनानावकाय श्रीश्राचार्याय नमः इति षट्त्रिंशदाचार्यगुणाः॥ए बत्रीश नमस्कार क री अन्नब नससिएनो पाठ कही उत्रीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करी एक प्लोगस्स प्रगट कही पारीने बी जी पण पूर्वोक्त करणी सर्व अनुक्रमथी करे ॥ इति।। ॥अथ चतुर्थदिवस विधिप्रारंजः ॥ ॥हां पण प्रनात संबंधि कर्तव्य करी" ही मो उवद्यायाणं” ए पदनुं बे हजार गुणणुं गुणे श्रीनपा ध्यायजीनो हरितवर्ण डे माटे हरितवर्णे मगनी दा ल प्रमुखनुं आयंबिल करे, अने उपाध्यायजीना प चीश गुण याद करीने पच्चीश नमस्कार करे, तेल खीयें बैयें.
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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