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________________ (७) ददातु वः सर्वसमीहितानि । २ ॥ श्रीपार्य नाथो जवपापताप, प्रशांतधाराधरचाररूपं ॥ विघ्नो घहंता प्रणतोरगेंः, समस्तकल्याणकरो . जिनः ॥ ३ ॥ वीरः सर्व सुरासुरेंड्महितो वीरं उधाः सं श्रिताः, वीरेणानिहतश्च कर्मनिचयो वीय निर नमः ॥ वीरातीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीर य घोर तपो, वीरे च धृति कीर्ति कांति निचय श्रीर नई दिश ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीअरिहंत स्तुति ॥ ॥ एस करेमि पणा , जिणवर वसहस्स वहमा एगस्स ॥ सेसाणंच जिणाणं, सगणहराण मन्वसि ॥१॥ जग मबय बीयाणं, वियंसिय वर नाण देगा धराणं ॥ नाणुकोयगराणं. लोगंमि नमो.जियवराण ॥॥ तिबयरे जगवंते,अणुत्तरे परक्कमे अमिय नाणी॥ तिन्ने सुगइ गगए, सिपिह देसियं वंदे ॥३॥ वंदामि महा नागं, महामुणिं महायसं महावीरं ॥ अमर नर राय महियं, तिबयरे मिमस्स तिबस्स ॥४॥ वयणा मएण नुवणं. निवावंता गुगणेसु हावंता ॥ जिय लोग मुरंता, अरिहंता ढुंतु मेसरणं ॥ ५॥ नङिय जर म रणाणं, सम्मत्तदोसत्त सत्तसरणाणं॥ तिदुयण जिण सुहियाणं, अरिहंताणं नमोत्ताणं ॥६॥.एवा श्रीअरि हंतने महारो नमस्कार होजो. श्रीअरिहंत कहेवाने तो के जेणे राग क्षेप रूपीया वैरी जीत्या अने अढार दोपर हित थया ते अढार दोपनां नाम गाथायें करी कहे जे.
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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