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________________ (१७) तो आयो जिन्न,अग्नि करी माख माडी ॥ सघलो लीयो सहेत, मीण कज मालो पाडी ॥२॥ पस्तावो करती प., घणुं हाथ माखी घसे ॥ कवि गंग कहे हो गुणियणो, कृपण तेम माया कसे ॥३॥ अथ अष्ट महासिदि स्वाध्याय ॥ ॥ श्रुतदेवीनो लही पसाय,श्रीसगुरुना प्रणमी पा य ॥ लक्ष्ण अष्ट महासिदि तणां, कढं शास्त्रथी सो हामणां ॥ १ ॥ महिमा सिदिथी मेरुसमान, रूप करण मामर्थ वखाण ॥ त्रिनुवनने पूजित पण होय, विष्णु कुमार तणीपरें जोय ॥ ॥ वशिता सिद्धि जग वश करे. जो मनमांहे तेहQ धरे ॥ वायु थकी पण लघुतर रूप, लघुता सिद्धिथी करे अनूप ॥३॥ नमिपरें जल ऊपर जाय, जलपरें में सुब की खाय ॥ विविध विषय नोक्ता पण कह्यो, प्राका म्य सिदिनो गुण ए लह्यो ॥ ४ ॥ अंगुलि अग्र क री रविचंद, मेरु अग्र फरशे यानंद ॥ प्राप्तिसिदि प्र गटे जेहने, एहवी शक्ति होवे तेहने ॥ ५॥ सूक्ष्म था विचरे आकाश, अणिमा सिदि तणो सुविलास ॥ जिहां वा तिहां विचरे सही, कामावसायि सिदि बल लही ॥६॥ तीर्थकर इंसादिक तणी, ऋदि वि कुर्वण शक्ति जणी॥ सिदि ईशिता नामें वली,त्रण लोक प्रनुतागुं फली ॥ ॥ अष्टप्रकारे ए ऐश्वर्य, नामनेद नाखे मुनिवर्य ॥ योगसिदिनु ए फल स दु, सिदि नाम पण नाखे बदु ॥ ७ ॥लब्धितणे अ
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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