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________________ ( ६५५ ) मिने विषे नरकावा सामां ऊाजा शीतल बे ने उष्ण थोडा बे; तथा बडी अने सातमी एबेहुनी एकांत शीतल भूमिकार्ड बे. अने तेमां रहेला नारकीयो उष्णयोनिया होय बे. परंतु एक एक जूमिनी नीची नीची भूमियोमां अनुक्रमें तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम वेदना बे, तेनुं स्वरूप कहे बे. ग्रीष्मकतुने अंतें मध्यान्हसमयें सूर्य प्राप्त थये a ने आकाश मेघ रहित बने अत्यंत पुष्ट पित्त प्रकोपें करी व्याकुल ने बत्ररहित चारे दिशियें प्र दीप्त थयेली जे अग्निज्वाला तेणेंकरी व्याप्त एवा कोई पुरुपने जेवी वेदना याय, तेथी अनंतगुणी नष्णवेद ना नरकावासाने विषे रहेला नारकी जीवोने जाणवी. शीतयोनिया नारकीने उष्णवेदनारूप नरकावा साथी लइने खेरजा अंगारामां नाखीने कोइ धमे, तेवारें तो ते नारकी चंदन जेवी शीतलता पामी अत्यंत सुखी यया बता ते अग्निमां निश पामे. वली पोप तथा माघ महिनामां रात्रिने समयें शीतल वायु वाय, तेणें कर जेम हृदयादि कंपे, तथा हिमाचलमां वस्त्ररहि त बेठा थकां उपरथी हिम पडतां जेवी शीतवेदना होय. तेथी अनंतगुणी शीतवेदना नरकावासामां होय. तें शीतवेदनायुक्त नरकवासामांथी ते नारकीने बा हेर काहाडी पूर्वोक्त हिमाचलादिक शीतल स्थलें जो स्थापन करीयें तो ते नारकी निरुपम सुखीया थया ता निाने पामे.
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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