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________________ (६४) तथा हरिनसरि कत लघुत्ति३७२७ श्लोक , सर्व संख्या२७५१५. ५ श्रीजंबूहीप पन्नत्ति उपांग नगवति प्रतिबद एनी मूल संख्या १४६ मलयगिरिकत टीका २००० तथा चूर्णी १७६० . सर्व संख्या १७००६. ६ चंपन्नत्तिसूत्रज्ञाताप्रतिबदमूल संख्या १२०० तथा मलय गिरिकत टीका ए४११ तथा लघु वृत्ति १000 श्लोक जे. ए सर्व संख्या १२६११. ७ सुरपन्नत्ति उपांग पूर्वोक्त चंदपन्नति तथा ए वेदु । मली ज्ञाता प्रतिबद ने एनी मूल संख्या १२०० तथा श्रीम नयगिरि कृत टीका ए००० घने चूमा १००० सर्व संख्या १२२००. १२ निरयावलिका सूत्र अथवा नामांतरे एक कप्पि या अध्ययन १७, बोजु कप्पवर्मिसिया अध्यय न १२,त्रीजुं पुफिया अध्ययन १०, चोथु पुप्फ चूलिया अध्ययन १०, अने पांचमुं वन्हि दिसा ए पांच उपांगनुं नाम निरयावलिका कहेवाय . ए कप्पिया प्रमुख पांच नपांगनी अध्ययन संख्या ५२ जे, ते अनुक्रमें सातमा नपासक दशां गादिक पांच अंग प्रतिब.ए पांचेनीमलीश्लो कसंख्या ११०ए ले ए पांचेनी वृत्ति ७०० श्लोक प्रमाण श्रीचंसूरि कतले. सर्व संख्या १०० एमबार नपांगनी सर्व मलीमूल संख्या २५४२०, तथा टीकानी संख्या ६७५३६ भने लघु टीकानी
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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