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________________ ( ५६४ ) ॥ अथ नेम जिन स्तवनं ॥ राग कल्याण ॥ ॥ घरें वो तो पूढं एक वातडली रे || घरे० ॥ ताहारेनें माहारे साहेबा प्रीत घणेरी, पडिय पटोले जातडली रे ॥घरे ० ॥ १ ॥ तोरणथी रथ फेर चलायो, जाणी तुमारी जानडली रे ॥घरे ॥ २॥ महेर करीने माहारे मंदिर पधारो, रहोने जुनी रातडली रे ||घरे || ३ || नेम राजुल ये सरग सीधाए, मुक्तें गया नली जातडली रे ||घरे | ४ || रूपचंद कहे नाथ नि रंजन, तुमचं बांधी मारी प्रीतडली रे || घरे ० ॥ ५॥इति ॥ ॥ अथ नेभजिन स्तवनं ॥ ॥ तोरण यावी रथ पाठो केम फेरो रे ॥ त्रा० ॥ संयम व्यो तो सायें अमने तेडो ॥ मारा वा० ॥ उनां वनां अरज करे सहु लोक रे ॥ वा ॥ बोल कोल किम करीने थारो फोक ॥ मारा० ॥ १ ॥ नेमजी तमें तो लीलाना बो साथी रे ॥ वा० ॥ कीडीना रोक्या केम रहेशो हाथी ॥ मारा० ॥ नेमजी तमें तो धरी रह्या एक ध्यान रे ॥ वा० ॥ आवडलुंते किहांथी ग्राव्यं ध्यान || माहा० ॥ २ ॥ नोधारां ते केने थें रेहेचं रे ॥ वा० ॥ हियडलानां दुःखडां केने केहेशुं ॥ मारा० ॥ उदयर तनना रसिया बालम नेम रे ॥ वा० ॥ राजि मतीना सीधा वंबित प्रेम ॥ माहारा वा० ॥ ३ ॥ ॥ प्रस्ताविक हो । ॥ सबे न सब युग सरस हे, ज्यां लिंग न परत का म | हेम हुताशन पर खियो, पीतल निकसत श्याम ॥ १
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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