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________________ (444) म याठे प्रवचन माता रे ॥ ए तो साचो करम विधा ता ॥ मनो० ॥ ६ ॥ गयो शोक सातम तिथि सारी रे, नेम निरंजन ब्रह्मचारी रे ॥ तेना नामनी जाउँ बलिहारी ॥ मनो० ॥ ७ ॥ श्रावी श्राग्म यानंद का री रे, ढुंतो व जवांतर नारी रे ॥ वालम मत मू को विसारी ॥ मनो० ॥ ८ ॥ नवमें नवमो जव सा रोरे, नेम राजननो धारो रे || नेह निर्वही पार उतारो || मनो० ॥ ए ॥ दशमे प्रभुदया धरीजें रे, अबलानी आशीष लीजें रे ॥ ते माटे दरिसन दीजें ॥ मनो० ॥ १० ॥ अगीयारशें एकली नारी रे, पी यु मेली तो निरधारी रे || प्रीतम तमें पर उपका री ॥ मनो० ॥ ११ ॥ बारसना बोल संजारो रे, या डो याव्यो वरसालो रे | मोहन किम जरीयें उचा लो ॥ मनो० ॥ १२ ॥ तेरशें तोरणथी फरिया रे, गिरनार जणी संचरीया रे || नेम राजिमती नहीं वरीया ॥ मनो० ॥ १३ ॥ चौदशथी चिंता नांगी रे. सुत समु विजय लय लागी रे ॥ प्रभु थई बेठा नी रागी ॥ मनो० ॥ १४ ॥ पूनमें तो परम पद धारी रे, थया जनम मरण जय वारी रे ॥ प्रभुयें राजुलने तारी ॥ मनो० ॥ १५ ॥ पन्नर तिथि पूरी गाई रे, कहे राजरतन सुखदाई रे || तेज खेटक पुरम स वाई | मनो० ॥ १६ ॥ इति ॥ ॥ अथश्री शत्रुंजयनी गरबी ॥ जे कोई अंबिकाजी ॥ ॥ मातने याराधशे रे लो || ए देशी ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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