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________________ ( ५४५) 0 क || पूर्णानंद सुखद पियु संगें, सब सखीयन मि लाई हो || खेल | निज गुन बागमें सहज बसंतें, मौज मच। मन जाई हो ॥ खेल ॥ १ ॥ ध्यान स माधि जवनमें बेठे, रस नरी खेजे गोसांई हो ॥ खे ॥ प्रभु आणा शिर बत्र बिराजे, बिद्धुं नय चमर ढला ई हो ॥ खे० ॥ २ ॥ श्रागम वचन संगीते बहुगम, वाजित्र विविध बजाई हो । खे० ॥ शांति सुधारस प्याले पीवत, श्रानंद लील जमाई हो ॥ खे० ॥ ३ ॥ या विधपीठ प्यारी मिलि खेलत, सब सुख संपत्ति पाई ॥ खे० ॥ जानुचंद प्रभु पास पसायें, शिव सुखहर्ष वधाई हो || खे० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ राग धमाल ॥ ॥ होरी खेलावत कानईयां, नेमीसर संगें ले न ईयां ॥ एकणी । रेवत गिरि पर एकता मिले सब, सहस बत्रीश तेंवरीयां ॥ होरी० ॥ १ ॥ कोई संग पिचकारी लीए कोई, अबिर गुलालसें फो नरईयां ॥ हो० ॥ २ ॥ नेमकुमर खेजें उत होरी, विवाह मनावत गोपी मिलईयां ॥ हो० ॥ ३ ॥ मौन रह्या प्रभु बात विचारी, परणो देवर नारी नलईयां ॥ ॥ हो० ॥ ४ ॥ तोरण यावी पशुओं बुडावत, राजुन नारी विचार करईयां ॥ हो० ॥ ५ ॥ मुक्ति धूतारी शोक्य हमारी, इनसें क्युं मेरो चित्त जलश्यां ॥ ॥ हो० ॥ ६ ॥ सहसावन जई संयम लीनो, शुकल ध्यानसें केवल पईयां ॥ हो० ॥ ७ ॥ नेम राजुल ३५
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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