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________________ (५३) रम खपावी मुगतें गया ए ॥ २३ ।। केवल महिमा होय,धन धन करे सदु कोय ॥सुगा जिनमारगकियो दीपतो ए ॥ २४ ॥ ॥ उहा ।। कुंती नगरीनी मध्ये, दुवोज हाहाका र ॥ देखो राय मरावीयो, विना गुने अपगार ॥१॥ लोक दुवा सदुथागला, जोर न चाले कोय॥मुनिने मोद सिधावणो, पण वैर न बोडे कोय॥ ॥ किम बफे पांचशे सुनट,वलि राणी ने राय ॥ वैर खबर कि ए विध पडे, ते सुजो चित्त लाय ॥ ३ ॥ ॥ढाल त्रीजी॥धरम हिये धरो॥ए देशहजी साधु आयो नहारे, जोवे पांचशे वाट ॥ नलामण दोनी रायजी रे, दण दण करे उच्चाटो रे ॥ धन्य महोटा मुनी॥ नित्य कीजें गुण ग्रामो रे॥ध० ॥सीफे सघलां कामो रे ॥१॥ध नगर गली फरी जोयता रे, किहां न दीगे रे साध ॥ सुण्यो साधु मास्यो गयो रे, तव परमारथ साधो रे ॥२॥ध० ॥ राजा पूजे कुण तुमें रे, तव वलता कहे जोध ॥ कनककेतुना रजपूत बांरे,तुमें करी वात अयुक्तो रे॥शोधावंधक कुमर दीक्षा लेइरे, अमें रखवालाजीलासो मुनिवर तें मारीयो रे, न सरी गरज लगार रे ॥ ४ ॥ध०॥ वचन सुगी जोधा तणां रे,राय दुवो दिलगीर ।। हाहा पाप जामां कीयां रे, माखो राणीनो वीर रे ॥ ५ ॥ ॥ध० ॥ राणी वात सुपी तिसें रे, लागो मरम प्र दार ॥ मूरबागत धरणी ढली रे,लूटी आंसूडानी धार
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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