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________________ (५०१) दि गेह के ॥ चरण कमल नेट्याथकी, महामंग ल हो मन मान्यो नेह के ॥सोजागी० ॥ ६॥ संवत सत्तर अडश, फागुण शुदि हो तेरश तिथि सार के ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, जिन प्रणम्या हो होये जयजयकार के ॥ सोनागी० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ अजितजिन स्तवनं ॥ ॥अजित निणंद जुहारीयें, साहेबा विजया राणीना नंद ॥ जिणंमोरा हे ॥ सुर नर किन्नर तुम तणा, साहेबा सेवे पय अरविंद ॥ जिणं ॥ अजि० ॥ ॥ १ ॥ जितशत्रु नृप लाडिलो ॥ सा ॥ जितशत्रु नगवान ॥ जि ॥ जितशत्रु मुफ कीजियें ॥सा० ॥ दीजियें वंटित दान ॥ जि० ॥ अजि० ॥ २ ॥ अंत राय पंचक टल्युं ॥स॥ हास्य पटक अज्ञान ॥ जि०॥ अविरति काम निज्ञ तंजी, तेम राग देष अंतवान॥ जि० ॥ अजि० ॥३॥ मिथ्यात्य दोप अढार ए॥ सा० ॥ त्यजी करवो तुम गुणसंग ॥ जि ॥ केव लझान बिराजता ॥ सा० ॥ सादि अनंत अनंग ॥ जि० ॥ ४ ॥ तुं सकल परमेसरू ॥सा ॥ तुं निज शिव पद नूप ॥ जि० ॥ तुम पद पद्मनी चाकरी ॥ सा०॥ चाहे चित्त नित्य रूप ॥ जि० ॥ ५॥ इति ॥ ॥अथ अजितजिन स्तवनं ॥ सुरतीमहीनानी देशी॥ ॥ कोशल देश सोहामणो, नयरी अयोध्या रेठा म ॥ राज करे तिहां राजवी, जीतशत्रु एनुं नाम ॥ ॥ विजया रे राणी तेहनी, शीलवती अनिरा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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