SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४०६ ) फेरी, पशुन सुली पोकार रे ॥ हुं० ॥ महा० ॥ यांबा मोखा केसुडां फुल्यां, यायो मास वसंत रे ॥ हुं० ॥ महा० ॥ २ ॥ दार मोर बपैया रे बोले, कोयल शब्द सुगावे रे || हुं० ॥ महा० ॥ ऊरमर ऊरमर मेदुला रे बरसे, बंद पडे रंग रोज रे || हुं० ॥ महा० ॥ ३ ॥ लख्यो संदेशो पिया मिलवेको, कोइ बढान न जाय रे ॥ ढुं० ॥ महा० ॥ ऋषि कुशल बुध शिष्य इम जंपे, वालम ध्यान धराय रे || डुं० ॥ महा० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ जीडनंजन जिन स्तवनं ॥ ॥ जिनराज जोवानी तक जाय बे रे, खरां दुःख डां खोवानी तक जाय ले रे ! हलुकर्मि होवानी त क जाय ले रे, जगवंत जज्यानी तक जाय बे रे ॥ ब हु लोनें ते लान लूंटाय बेरे ॥ जिन० ॥ १ ॥ इनि या रंग दोरंगी दीसे, पलक पक पलटाय बेरे ॥ ॥ जि० ॥ खोटे नरोंसे खोटी यावं, गांठनो ग्रंथ लुं टाय बे रे ॥ जि० ॥ २ ॥ सकन सगां सहु स्वार थ सूधी, गरजें घहेलां याय ने रे ॥ जिन० ॥ पुण्य विना एक परजव जातां, संसारी सीदाय बेरे ॥ ॥ जि० ॥ ३ ॥ रामा रामा धन धन करतो, धव जिहां तिहां धाय बे रे ॥ जि० ॥ कनक बीजी कामिनी लुब्धा, केई प्राणी कूटाय बे रे ॥ जि० ॥ ॥ ४ ॥ पंच विषयना प्रवाहमांहे, तृष्णा पूरें तणा य बेरे ॥ जि० ॥ नाव सरिखा नाथने मूकी, पापने नारें नराय बे रे ॥ जि० ॥ ५ ॥ मोहराजाना राजमां धव ने
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy