SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 553
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४८३) ॥ ज० ॥ ए ॥ मुऊ मंदिर सुरतरु फलियो, परमातम गौतम मलियो, गई जावत शुभदिन वलियो ॥ ज० ॥ ॥ १० ॥ संवत जंगलीश पचलोतेरा वर्षे, दीवाली दिन मन हर्षे ॥ प्रनुं मोह वया गुन दिवसें ॥ ज० ॥ ११ ॥ ॥ अथ कलियुगनी स्वाध्याय || ॥ सरसती सामिनी पाय नमीने, उलट मनमांहे प्रायो॥ तीरथ नहिं को इस संसारें, ते ए कलियुग यायो || देखो वे यारो कूडो कलियुग प्रायो । ए यां hi || बाबो कहे महारी नानडी बेटी, दिन दिन मूल्य सवायो || वे यारो कूडो कलियुग थायो ॥ १ ॥ राजा ते परजाने पीडे, कुनर काम चलायो । बोल बंध नही मंत्रीने, गोचर खेत्र खेडायो ॥ वे यारो कू० ॥ २ ॥ गुरुने गाल दीये निज चेलो, वेद पु राण पढायो ॥ सासु चूजेने वढु खाटलडे, फुर्के श रीर जलायो ॥ वे यारो कृ० ॥ ३ ॥ एंशी वर्षनो हींमे होंगें, मूछें हाथ घलायो ॥ पंच तली साखें परली ने, अबला अर्थ गमायो । बे यारो कू० ॥ ४ ॥ जोगी जंगम ने संन्यासी, जांग नखे मदवायो ॥ चोर चाड परधनने खाये, साधुजन सीदायो | बेयारो कू० ॥ ॥ ५ ॥ निर्धनने बहु बेटा बेटी, धनवंत एक न पायो || नीच तणे घर प्रति धणी लखमी, उत्तम जन सीदायो ॥ बे यारो कृ० ॥ ६ ॥ न मजे बाप सं घातें बेटो, घणे रे मनोर्थे जायो ॥ हाथ नपाडे माय नें मारे, परणीभुं नमाह्यो || बे यारो कू० ॥ ७ ॥ घर
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy