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________________ (४७०) लजिन, दीठा लोयण आज ॥ मारा सीधां वंबित काज ॥ विमलजिन ॥ दीठा ॥ १ ॥ चरण कमल क मला वसे रे, निर्मल थिर पद देख ॥ समल अथिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख ॥ वि० ॥ दी॥ ॥ २ ॥ मुफ मन तुऊ पद पंकजें रे, तीनो गुण म करंद ॥ रंक गणे मंदिरधरा रे, इंद चंद नागिंद ॥ ॥ वि० ॥ दी० ॥ ३ ॥ साहिब समरथ तुं धणी रे, पाम्यो परम उदार ॥ मन विशरामी वालहो रे,प्रा तमचो आधार ॥ वि० ॥ दी० ॥ ४ ॥ दरिसण दी ठे जिन तणुं रे, संशय न रहे वेध ॥ दिनकर कर जर पसरंता रे, अंधकार प्रतिषेध ॥ वि०॥ दी॥५॥ अमीय नरी मूरति रची रे, उपम न घटे कोय ॥ शांति सुधारस जलती रे, निरखत तृप्ति न होय ॥ ॥ वि० ॥ दो० ॥ ६ ॥ एक अरज सेवक तणी रे, अवधारो जिनदेव ॥ कृपा करी मुफ दीजीयें रे, या नंदघन पद सेव ॥ वि० ॥ दी० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री अनंत जिनस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग रामग्री ॥ देशी कडखानी॥ ॥धार तरवारनी सोहली दोहली, चनदमा जि नतणी चरण सेवा ॥धार पर नाचतां देख बाजीग रा, सेवना धार पर रहे न देवा ॥धा० ॥ १ ॥ए अांकणी ॥ एक कहे सेवियें विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे ॥ फल अनेकांत किरि या करी बापडा, रडवडे चार गतिमाहे लेखे ॥धा०॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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