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________________ (४३३) तुमें धारो रे॥ते मुनि॥सु॥ ॥ज॥॥पांच स मिति विवरी कहूं, O समिति प्रथम वखाण रे ॥ बक्काय रहा जे करे, या कही तेह सुजाण रे ॥ ॥ो० ॥ सु०॥सु०॥ज॥३॥नाषा समिति बीजी हवे, सदुने सुख उपजे सोय रे ॥ एषणा बहेंतातीश दोष , मुनिने आहार एम होय रे॥ मुनि ॥ सु० ॥ सु॥ज॥४॥अदान निदेपणा, समिति ले मूके योग रे॥ पारिष्टापनिका कही, मल मूत्र नाखे नप योग रे ॥ मल ॥सु०॥सु०॥ज॥५॥त्रण गुप्ति हवे चित्त धरो, मन वचन काया करे गुंछ रे ॥ आठ प्रव चन मात जे, मुनि धारे तेहिज बुम रे॥ मुनि ॥ ॥सु॥सुं०॥ ज० ॥६॥दुधा पिपासा शीत जे, नुष्ण मंसा परिसह चेल रे ॥ रती स्त्रियादिक ते वली, चरि या निसि दियादिक मेल रे॥च ॥ सु० ॥ सु० ॥ ज० ॥ ७ ॥ सया आक्रोश वह जायणा, अलान रोग त ण फास रे ॥मल सकार परिसह जे, पन्ना अन्नाण सं मत्त रे॥पन्ना०॥सु० ॥ सु॥ज ॥७॥खंति मद्दव अ ऊव, मुत्ति तव संजम मेहरे ॥ सचं सोहं अकिंचण, ब्रह्मचर्य ए दशविध जेह रे॥ ब्रह्म॥सु॥ सु०॥ज०॥ ॥ए॥ प्रथम अनित्यह नावना, अशरण संसार ए कत्व रे॥अन्यत्त्व जावना पंचमी, अशुचि जावना त त्त्व रे॥अशु॥सु॥सु॥ज॥१०॥ आश्रव संवर निर्जरा, लोक बोधि उर्लन नाव रे ॥धर्म ध्यान ते बारनी, ए ले जवजल जंतु नाव रे ॥ ए ० ॥ सु० ॥ २८
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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