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________________ (४३०) ॥ सा० ॥ प्रथम संघयण संस्थान' हो लाल, शुन वरण शुन गंध ॥ सा० ॥ गुन रस गुज स्पर्शने हो लाल, अगुरु लघु अदंन ॥ सा० ॥ पु० ॥ ॥ ३ ॥ सा० ॥ पराघात श्वासोलासने हो लाल, लेवाने जेहनी सक्त ॥ ॥ आताप नेद पच वीशमो हो लाल, नद्योत कर्मनी व्यक्त ॥ सा० ॥ ॥ पु० ॥ ४ ॥सा॥ शुनवगई गुनगति करे होला ल, निर्माण नाम अगर्व ॥ सा० ॥ त्रस दशको दश नेदनो हो लाल, आगलें कहे ते सर्व ॥ सा ॥ ॥ पु० ॥ ५ ॥ सा ॥ सर नर तिरि अानवू हो लाल, तीर्थकर नाम कर्म ॥सा ॥ हवे त्रस दशको वर्णवू हो लाल, जेदथी लहे शिवं शर्म ॥ ॥ सा० ॥ पु० ॥ ६ ॥ सा० ॥ त्रस बायर पर्याप्ता हो लाल, प्रत्येक स्थिर गुन नाम ॥ सा० ॥ सौना म्य नामकर्मथी हो लाल, जीव लहे शुन ठाम ॥ ॥ सा० ॥ पु० ॥ ७ ॥ सा० ॥ सुस्वर आदय जस नामथी हो लाल, जीव लहे सुख नित्य ॥ सा० ॥ डूंगर गुरु पद सेवतां हो लाल, विवेक लहे जग जीत ॥ सा० ॥ पु० ॥ ७ ॥ ॥ दोहा ॥ पाप तत्त्वथी कुःख होये, पामे नरक दू वार ॥ ते माटे चेतन तुमें, मनथो एह निवार ॥१॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ सुरति महीनानी देशी ॥ ॥आवरण पंचने तिम वली, अंतराय ने पंच॥पंच निश कहि दर्शन, चारे ते खल खंच ॥ नीच गोत्र
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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