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________________ (४१ ) ॥ ढाल त्रीजी॥ जंवहिप मकार रे ॥ ए देशी।। ॥ रत्नपना पहेली जेह रे, सागर एकनुं । एक त्रीश हाथ बांगुला ए ॥शक प्रना बीजी होय रे, त्रण सागर तिहां ॥ हाथ बाशठ बार बांगुला ए॥२॥ वालुपना पुहवी त्रीजी रे, सात सागर आयु ॥ए कत्रीश धनुष एक हाथर्नु ए ॥ पंकप्रन चोथी नाम रे, दश सागर सही ।। बाशठ साढा धनुष तनु ए ॥१॥ पंचमी धूमप्रनायें रे, सत्तर स गर सुगो । धनुष सवासो जाणीयें ए । तमप्रना बड़ा जाणो रे, बावीश सागर ॥ धनुष अढीशे नापीयें ए॥ २२ ।। तम तमा सातमी नाम रे, तेत्रीश सागर ॥ धनुष शं चशे देह रचे ए॥ पांच कोडी अडश लाख रे, सहर नवाणुं ए॥ रोगें नारकी नित्य पचे ए॥२३॥परमा धामी पचावे रे, वत्ती दश वेदना ॥ कीधां कर्म ते जोगवे ए ॥ राज राज प्रत्ये पोहवी रे, श्म सात रा जनी ॥ सातमी प्रथिवी योगवी ए॥ २४ ॥ ॥दोहा॥ सात प्रकारें नारकी,बोल्यो तास विचार ।। जलचर थलचर खेचरू, तिर्यच त्रस्य प्रकार ॥ २५॥ ॥ ढाल चोथी॥त्रिपदीनी देशी ॥ ॥ नरपुरी चुजपुरी गर्नज थाय, गर्न समूर्बिम मह कहेवाय, वरस पूरव कोडी आय होनविका ॥ वरस पूर्वकोडी आय ॥ २६ ॥ सहस योजन तस काया दीसे, नुजपुरिकोश पृथक्त वली कहीसे, जि न वचनें चित्त हीसे हो ॥ नवि० ॥ जि० ॥२७॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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