SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४१६) कणा ॥ सिद्धांतमाहे में विशेषे, नेद अनेक अनि त एगा ॥ ४ ॥ ढाल ॥ एक वायरो जी, हलु हलुवा य रे॥गुंजारव जी,करतो चिहुं दिशि धाय रे ॥ पाडे न कली जी,वली वंटोलीयो एक रे ॥ घनवातें जी,वायु नेद अनेक रे ॥ ५ ॥त्रुटक ॥ श्म दोय नेद वनस्प ति केरा, साधारण प्रत्येक तरू ॥ कंद कोमल फल अंकूरा, फूल सेवाल सेखरू । अनेक नेद साधारण सुगोयें, लक्षण तस शास्त्रे सही। एहथी जे होय वि परीत, तेह प्रत्येक वनस्पति कही॥६॥ ढाल ॥ टथिवी पाणी जी,तेक वान काय रे॥ वसई पांचमीजी, था वरकाय कहेवाय रे ॥ विकलेंडी जी, नारळी तिर्यच मानवी ॥ वली देवता जी, बही त्रसकाय पालवी ॥ ७ ॥ त्रुटक ॥ पहेली टथिवीकाय आयु, वरस सहस बावीश ए ॥ सात सहस अपकाय जणीयें, अ नित्रण दिन दीस ए ।। वरस सहसत्रण वायु मुणी ये, वसई दस सहस जागीयें ॥ नारय देव विण जघन्य आयु, अंतर मुहूर्त प्रमाणीयें ॥७॥ ढालाअंगु लतणो जी,नाग असंख्यातमो नपुं॥ स्वानाविक जी, जघन्य दुवे सदुनो तनु ॥ चार थावर जी,गुरु लघु स म तनु जोय रे ॥ वनस्पति जी,सहस योजन जाजी होय रे ॥ए ॥ त्रुटक ॥ श्म होय समूर्डिम मनुष्य साधारण, सूक्ष्म जेह निगोद ए॥ तस आयु अंतर मुहर्त होवे,चौदराज अनेद ए॥ पांच थावर कहिये एक इंशी, शास्त्रे नेद तस ने घणा ॥ एम कहे कवि
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy