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________________ (३७) शिवनयरी शिव पापिया, ए समता फल जोय ॥ १२२ ॥ चिलायति पुत्र नारि शिर, बेदीने कर लीध ॥ उपशम संवर विवेकथी, कृतकर्म दरें कीध ॥ १२३ ॥ दिन प्रति सात हत्या करी, अर्जुनमा ली नाम ।। परिसह देशि दाधरी, पाम्या शिवपुर गम ॥१२४॥ मुनिपति मनि कानुलग रहे, अगनी दाधी देह ॥ परिसह साह पदवी वरी, अमर वधू धरि नेह ॥ १२५ ॥ वंश उपर नाटक करी, एला पुत्र कुमार ॥ जाति ममरण कपनु, ज्ञान अनंत अपार ॥ १२६ ॥ कर्म कों आपाढमुनि, जन्त नाटक कीध ॥ अनित जावना नावतां, तिणे तिहां केवल लीध ॥ १२७ ॥ सुशिष्य पंथकजी मुनि, गुरु प्रमाद कियो दूर ॥ शत्रुजय अणसण करी, ते वंदं गुण सूर ॥ १२ ॥ चंझोड़ गुरु खं, करी, रजनी कियो विहार॥ शिष पण केवल पामियो, तिम गुरु केवल धार !! १२ए ॥ षटमासीने पारणे, ढंढ ण नाम कुमार ॥ मोदक चूरत पामियो, केवल ज्ञा न नदार ॥ १३॥ पट खंम राज हेला तजी, लीधो संजम जार ॥ पटदश रोग इहां सह्या, श्रीश्रीसनत कुमार ॥१३१॥ कुर नरवतां केवल लघु, कूरगड अणगार ॥ दमा खग हाथे धरी, जे मुनिमां सिण गार ॥ १३ ॥ पंखी प्राणज राखवा, करि खंमो खंम देह ॥ मेघरथ राय तणे नवें, प्रसन्न दु सुर तेह ॥ १३३ ॥ वंदी वीर गुमानगुं, दशान
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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