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(३७६) नो, त्रिप्टष्ठ वासूदेव ॥ ए ॥ जमतां जमतां अव तस्यो, देवानंदानी कूरव । व्यासी रात्रि तिहां रही, क मैं लडं वलि दुःख ॥ ८ । ॥ इंश अहिव्याशुं जुन, लुब्ध हुन सुरदेव ॥ ईश्वर देव नचावियो, पारवती पियु हेव ॥ १०० ॥ लाल खमणने पारणे, कुल वालु अगार ॥ चित बलर संग नारियें, चुकत न लागी वार ॥ १०१ : गंचेशे रामा तजी, लीयो संयम नार ॥ दश दश नंदिपेण बूफ़वी, नर कोश्या दरवार ॥ १०२ ॥ वाधी तांतणा सूत्रना, वीट्यो आईकुमार ॥ सुत मोहनी वशे रही, पनि लियो संज म जार ॥ १०३ ॥ पंचसया मुनि नेमना, उर श्री पासना बार ॥ जोग कारण संयम तजी, ममियो तिणें घरबार ॥ १०४ ॥ नवाणुं कोडि कंचन तजी, उर तजि यावे नार ॥ ते फुःकर नित वंदियें, श्रीजंब त्रण काल ॥ १०५ ॥ एक कन्या कोडी कंचन, तजि जेणे वलि दूर ॥ वहेरस्वामि ते वंदीयें, नित गम ते सूर ॥ १०६ ॥ नवाणुं पेटी सुरतणी, नित नित होय निर्माल्य ॥ नरजव सुरसुख जोगवे, ते शालि न कुमार ॥ १०७ ॥ रत्न कंबलने कारणे, श्रेणि क आव्यो बार ॥ गोखथकी बोली रह्यो, लीयो संजम नार ॥ १०७ ॥ आठ नारी जेणे तजी, ते धन्नो धन धन्न ॥ नारी हास्य संयम लीयो, राख्यु ठाम जिणें मन ॥ १० ॥ खट नंदन देव कि तणा, नदिलपुर सुलसा नार ॥ तास घरे ते उडया, रूपें