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________________ (३७५) प्रत्येक वनस्पति, चनदह साधार ॥ बी ति चरिंदी जीवना,बेबे लाख विचार ॥ ते ॥ ४ ॥ देवता ति बैंच नारकी, चार चार प्रकाशी॥ चनदह लाख मनुष्य ना, ए लाख चोराशी ॥ ते ॥ ५॥ ण नवें परन वें सेवियां, जे पाप अढार ॥ त्रिविध त्रिविध करी परिहरूं, मुर्गतिनां दातार ॥ ते० ॥ ६ ॥ हिंसा की थी जीवनी, बोल्या मृषावाद ॥ दोष अदत्तादानना, मैथुन उन्माद ॥ ते० ॥ ७ ॥ परिग्रह मेट्यो कारि मो, कीधो कोध विशेष ॥ मान माया लोन में की यां, वली राग ने शेष ॥ ते ॥ ७ ॥ कलह करी जी व हव्या. दीधां कूडां कलंक ॥ निंदा कीधी पार की, रति अरति निशंक ॥ ते ॥ ५ ॥ चाडी कीधी चोतरे, कीधो थापणमोसो ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म नो, ननो प्राण्यो जरोंसो ॥ ते० ॥१०॥ खाटकीने नवें में कीया, जीव नानाविध घात ॥ चडीमार नवें चरकलां, मावां दिन रात ॥ ते० ॥ ११ ॥ का जी मुनाने नवें, पढी मंत्र कोर ॥ जीव अनेक ऊ ज्ने कीया, कीधां पाप अघोर ॥ ते ॥ १२ ॥ मा बीने नवें माउलां, जाव्यां जलवास ॥ धीवर नील कोली नवें, मृग पाड्या पास ॥ ते० ॥१३॥ कोटवालने नवें में कीया, आकरा करदंग ॥ बंदी वान मराविया, कोरडा बडी दंम ॥ ते० ॥ १४ ॥ परमाधामीने नवें, दोधां नारकी उरक | बेदन ने दन वेदना, ताडन अति तिरक ॥ ते ॥१५॥ कुं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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