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________________ ।। जगी सारभा यित्रनाोहा ॥ भुष कलिया सनी, तोडी गुंध्या द्वारा ।। सामजी वृक्षे जाधिने, हे या जङनी भार ॥था होंडे घएगान है। उनां, तो ड्या तश्वर इस जघ्या वृक्ष सामजी, हेजा न्यारा सूस।। न्नन्भन्नड बनेरीया, तो ज्या तश्वर पान ।। आधे मस्तक जोधाने, ताऐं। कुरेदेशन आउट सामसी भोटहूं जाये तरखर डा.ज ।। तीजां मेहनो पानडा, भैंसी जांडाधार ॥ जायिवना होहा।।. मा जाप सुतमोथी, पोठो डीपो पोष ।। नारा बराधी नी बज्यो, दुः महार्घ हम शोष॥॥ छाती उगपर सात हे, लांगे हेईला मात पिता गुएा खोर ते सहता दृष्ट छापार ॥ सुखरता माहोढुं जीयु, हीया छातीरे पादता साते हरीने लिहता, नीसरे दिसे उीपाया। ओ || तेरभावांना त्रिनाोहा।। डोल भरोसा हेर्छने, उपट करया घणी वार ! पर्वत पडता सह डीपर तरवारांरी भार !!था वचन यूंगले नर हुवे,गाया उपने पटक पछाडी पवर्ते, जंड अंड उरे हेहोश लूटा सोंग पावता, उ ता युगली था। मेशवर यमदूत ते, उरल पेछारपछा ।। थोहमा चित्रना छोड़ा ।। साली नइनें छाडे, पापी जेठी न्नय।। पान रूप शस्त्र न पड 'जड होय गयाशा सासु बहु संताप ति, डरती तोए उपह॥ परमा पामी तहुने हेवे हुन् स्पह ॥शा करता यावत रागा, घर घर भाजपा उता लाई उपेसणी, ते सहे दु:ज खपानामा, नर महिथीनाशता र सामसी लया। उपरथी पडे पानडा, न्मयी मोरया धोया भा ॥ पन्नरमा त्रिना होहा ।। सप्सु वटु संतापति, पुज हेती हिनरात ॥ लहानरमा पनी न्यारी छातीपर सातारा शोक्च तएगा सुत पीपरें, घमडी घण घरना। पाटु महारे खाइएगी, पर लार लरंत आ पडती पोया सासरे, देती सजस् सुराया डूडा उसके घढावती, जवगुहा गाली आप ॥४॥ घात करे विश्वास हे, छेस करती छङ माहार निल्न नारा पहने. हे वे एन थाह पाए रमनुमित अरम ने इरे, तेहना खेड़हवालासा मी धर्मा पहरे, पामे सुज रसाल ॥जा सडती पोयर सासरे, करती उसेश हुरूप ॥ वातैबात खसावती, लिएर लूं हीसे रुपए ॥ शोलमा चित्रना होहा।। म्हारे उरी कापियां, सीसा महोटा लड ॥ परमा धामी तेहनो, मस्त 5 छोटे झडा था मेरा मेहाला पावला, भूमि विहारण नेहा पु थ्वी गये सारंमथी, पामेष्ट खछेद गा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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