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________________ ( ३६५ ) ॥ ए ॥ गिरि देखी लोचन वरियां, चक्केसरी वीर केश रीया, जाय केतकी वृक्ष लहेरीयां, शेत्रुंजे नदी जल जरीयां रे ॥ वि० ॥ १० ॥ राय नरत रतन बिंब वा वे, चक्केसरी यात्रा करावे, ते त्रीजे नवें शिव जावे, शुन वीर वचन रस गावे रे ॥ वि० ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ कर्म उपर साय प्रारंभः ॥ ॥ देवदारणव तीर्थकर गएणधर, हरिहर नरवर सबला ॥ कर्म संयोगें ते सुख दुःख पाम्या, सबल हुआ म हा निबला रे ॥ प्राणी कर्म समो नही कोय ॥ कीधां कर्म विना जोगवीयां, लूटक बारो न होय रे ॥ प्राणी कर्म० ॥ १ ॥ ए की | यादीसरने अंतरा य विटंव्यों, वर्ष दिवस रह्या नूखें ॥ वीरने बार वर्ष दुःख दीधुं, उपना ब्राह्मणी कूखें रे ॥ प्राणी कर्म० ॥ २ ॥ शाव सहस सुत मूया एक दिन, सामत सुरा जैसा || सगर दू महा पुत्रे डखीयो, करम त यां फल एसा रे ॥ प्राणी० ॥ ३ ॥ बत्रीश सह स देसांरो साहेब, चक्री सनतकुमार ॥ शोल रोग शरीरें उपना, करमें कीयो तस खुवार रे ॥ प्राणी० ॥ ॥ ४ ॥ सुनूम नामें श्रावमो चक्री, कर्मे सायर ना ख्यो । पच्चीस सहस यदें बना दीठो, पण किल ह्रीं नवि राख्यो रे ॥ प्राणी० ॥ ५ ॥ ब्रह्मदत्त नामें बारमो चक्री, कर्मे कीधो धो ॥ एम जाणी प्राणी वि कामें, कर्म कोई मत बंधो रे ॥ प्राणी० ॥ ६ ॥ वीश जुजा दश मस्तक हूता, जखमणे रावल मा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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