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________________ (३६२) रोबर कोरणी रेलाल, सोनुं घडे सोनार रे ॥ा० ॥ श्राव० ॥ ४ ॥ एकावन उरसीया जला रे लाल, सूखड केशर चंग रे ॥ आ॥ चंपा सेवंत्रीना जा डुवां रे लाल, जाणे प्रियगुं प्रीतम रंग रे ॥ आ ।। ॥ आबू॥५॥ अचल गिरि वधामणा रे लाल, चौमु ख प्रतिमा चार रे ॥आ॥ वलि वलि सेवक वीनवे रे साल, आवागमण निवार रे ॥आ॥बाबू॥६॥ ॥अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥लागो मेरो पारस प्रनुजीसें ध्यान ॥ लागो॥ मुगता गिरि पर आप बिराजे, फरकत फरीय निशा न ॥ ला॥१॥ बारा व्रत तप बाह्य अन्यंतर, समकित नाव धरान ॥ला ॥ २ ॥ नेमीचंद कहे सुनो नाश् श्रावक, पापहीं आप पीडान ॥ ला॥३॥ ॥अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ शांति मिलनकी आश हो ॥ जीया मानुवे ॥ शांति ॥ शांति मेरा वारी में शांतिको, ज्युरे फूलन बिच बास हो । जीया मा॥१॥ निशि दिन प्रनु जीको ध्यान धरत हुँ, जब लग घटमें सास हो ॥ जी० ॥ ॥ शांति जिणंदजीके चरनकी सेवा, गावे गुलाबचंद दास हो ॥ जी० ॥३॥इति ॥ ॥अथ षनस्तवनं ॥ ॥ नैना सफल नई, में निरख्या नानि कुमार, अ खीयां सफल नई ॥ में ॥ नवो नव नटकत सर न हूँ आयो, अब तो राखोने मोरी लाज ॥ नैना॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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