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________________ (३५३) दुवे, अपुनर्नव गुन निर्वाण हो ॥ सा ॥ ४ ॥ जी रे लोह नाव मूकी परो, जीरे पारस फरस पसाय ।। थाय कल्याण कुधातुथी, तिम जिनपद मोद उपाय हो ॥ सा० ॥ ५ ॥ जीरे उत्तम नारी नर घणा, जी रे मन धरी नक्ति उदार ॥ बाराधी जिनपद नहुँ, थाये जिन करे जग उपगार हो ॥ सा० ॥ ६ ॥ जी रे एहदुं मन निचल करी, जीरे निशिदिन प्रनुने ध्या य ॥ पामे सौजाग्य स्वरूपनें, निवृत्ति कमलावर था य हो ॥ सा ॥ ७ ॥ इति पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥शांति जिनेसर साहिबा रे, शांति तणो दातार ॥ सला ॥ अंतरजामी बो माहरा रे, बातमना आधार ॥ स० ॥ शांति ॥ १ ॥ चित्त चाहे प्रनु चाकरी रे, मन चाहे मलवाने काज ॥ स० ॥ नयण चाहे प्रनु निरखवा रे, यो दरिसण माहाराज ॥स॥ शांति ॥ २ ॥ पलक न विसरो मनथकी रे, जेम मोरा मन मेह ॥ स ॥ एक पखो केम रा खीयें रे, राज कपटनो नेह ॥ स ॥ शांति ॥३॥ नेह नजर निहालतां रे, वाधे बमणो वान ॥ स० ॥ अखूट खजानो प्रनु ताहरो रे, दीजियें वंबित दा न ॥ स ॥ शांति ॥४॥ आश करे जे कोइ आ पणी रे, नही मूकीयें नीराश ॥ स ॥ सेवक जा एगी ने यापणो रे, दीजियें तास दिलास ॥ स०॥ शांति ॥ ५॥ दायकने देतां थकां रे, दण नवि २३
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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