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________________ ( ३४७ ) सर्वे गया नासी ॥ सुखदायकना बो स्वामी, जीरे पल पल रूपी प्रत्रु अंतरजामी ॥ १ ॥ कवदेश प श्चिम धाम, जीरे पावन कीधां बे सुथरी गाम ॥ धन धन नाग्य उदय कीधां, जीरे पार्श्व प्रभुजीयें दर्शन दीघां ॥ २ ॥ घृतकल्लोल प्रत्र परताधारी, जीरे देरुं चणाव्यं प्रति नारी ॥ देश परदेशना संघ श्रावे, जी रे पूजा रचावे प्रभुजीनी जावें ॥ ३ ॥ यांगी रचावे घरी माला, जीरे रत्न करे बे रूडा ऊपकारा ॥ मुकुट कुंमल शिर बत्रधारी, जीरे चंकना शुभ ह ष्टितारी ॥ ४ ॥ जावी जावनाने प्रभु पूजो, जीरे नाथ विना देव नही दूजो ॥ प्रभु पूजेथी नवजल तरियें, जीरे नाम लेतां नव निधि वरियें || ५ || ढार बयाशी चैतर मास, जीरे पूनमें प्रभुजी पूज्या पास || प्रेमचंद गुरु ज्ञानी नावें, जीरें घृतकल्लोलजीना गुण गावे ॥ ६ ॥ ॥ अथ चंप्रनजिन स्तवनं ॥ राग काफी ॥ ॥ चंदा प्रभुजीसें लाल रे, मोरी लागी लगनवा ॥ चंदा प्रभुजीसें० ॥ ए यांकणी ॥ लागी लगनवा बो डी न लूटे, जब लगे घटमें सास रे | मोरी० ॥ १ ॥ दान शियल तप जावना जावो, जैन धर्म प्रतिपाल रे | मोरी० ॥ २ ॥ हाथ जोड कर खरज करत वंदत शेठ खुशाल रे || मो० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ कषन जिनस्तवनं ॥ ॥ केशरिया वाला, जो लका राखशो तो रेहेशे ॥ ॥ एकली ॥ साहेब कलिजुग केरा कूड कपटमें,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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