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________________ ( ३३७ ) सुंदर नद्दाम, नलिनी गुल्म विमान श्यो ॥ जगपति उत्तम पुण्य अंबार, निरुपम धनद निधान श्यो ॥ ३ ॥ जगपति उलें लें यंन, कीधी अनुपम कोरणी ॥ जग पति करती नाटारंन, पूतलीयो चित्त चोरली ॥ ४ ॥ जगपति नाजिनरेसर नंद, राणकपुरनो राजीयो ॥ जगपति सहुरयां शिरदार, जगमांहे जस गाजीयो ॥ ५ ॥ जगपति देव तुं दीनदयाल, नक्तवत्सल नलें जेटीयो ॥ जगपति देखतां तुऊ देदार, मोह त यो मद मेटी || ६ || जगपति उदयरतन नवजा य, संवत सत्तर त्राएं समे ॥ जगपति फागलवदि प डवे दिन्न, सादडी संघ सहित नमे ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ शियन विषे शीखामपनी सवाय ॥ ॥ प्रभु सायें जो प्रीत वंडो तो, नारीसंग निवा रोरे ॥ कपटनी पेटी कामणगारी, निश्वय नरक ज्वारो रे ॥ १ ॥ एहनी गति एहिज जाणे, रखे कोई संदेह आणे रे ॥ ए ॥ ए आंकणी ॥ अबला एवं नाम धरावे, सबलाने समजावे रे || हरि हर ब्र ह्म पुरंदर सरिखा, ते पण दास कहावे रे ॥ ए ॥ २ ॥ एक नरने आंखें समजावे, बीजाशुं बोले करारी रे ॥ त्रीजाशुं कर्म करे तक जोई, चोथो धरे चित्त मजा री रे ॥ ए० ॥ ३ ॥ व्यसन विलुद्धि न जुवे विमासी, घटता घटती वातें रे ॥ मूंक परदेशीनी परें जोश, मलजो एह संघातें रे ॥ ए० ॥ ४ ॥ जांघ चिरीने मांस खवाड्युं, तो पण न थइ तेहनी रे ॥ मोहनी २२
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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