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________________ ( २०६ ) ॥ अथ मन जमरानी वैराग्य सवाय ॥ ॥ नूलो मन जमरा कां नमे, नमे दिवसने रात ॥ मायानो बांध्यो प्राणीय नमे परिमल जात । नू० ॥ ॥ १ ॥ कुंन काचो का कारमी, तेहनां करो रे जतन्न ॥ विषसंतां वार लागे नहीं, निर्मल राखो रे मन्न ॥ ० ॥ २ ॥ कोनां बोरू कोनां वारू, कोनां माय ने बाप || आणी जावुं वे एकनुं, साधें पुष्य ने पाप ॥ ० ॥ ३ ॥ अशा ते मुंगर जेवडी, मरखं पगलां रे हे धन संची संची कां मरो, करवी दैवनी वेठ || नू० ॥ ४ ॥ धंधो करी धन जोडीयुं, लाखा उपर कोड || मरधनी वेला मानवी, लीयो कदोरो बोड || नू० ॥ ५ ॥ मूरख कहे धन माह रुं, धोखें धान्य न खाय । वस्त्र विना जइ पोटशे, लखपति लाकडा मांय || जू०॥ ६ ॥ नवसागर दुःख जल नस्यो, तरवो बे रे तेह ॥ विचमां जय सबलो बे, कर्म वायने मेह ॥ ० ॥ ७ ॥ लखपति बत्र पति सब गये, गये लाख वे लाख ॥ गर्व कर गोरखें वेसतां, नये जली बली राख ॥ नू० ॥ ८ ॥ धमण धूखंती रे रहि गई, बुज गई लाल अंगार ॥ एरणको dast मिठ्यो, ठ चल्यो रे लुहार ॥ नू० ॥ ए ॥ कवट मारग नदी चालतां, जावु पहेले रे पार ॥ 13 गल नहि हट वाणीयो, संबल लेजो रे सार ॥ ॥ ० ॥ १० ॥ परदेशी परदेशमें, कोण करो रे सनेह ॥ याया कागल उठ चल्या, न गणे यांधी ने
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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