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________________ (ए४) सकल संघकू, जय जयकार कहायो री॥धा॥३॥ ॥ अथ पार्श्वनाथ गीतं ।। राग काफी॥ ॥को न गमे चित्त को न गमे, प्रनु पासजी वि ना चित्त को न गमे । परम निरंजन देवने मूकी, दूषण सहितने कोण : मे ॥ प्रनु० ॥१॥ संदर रख टरस जोजन बांकी, कुत्सित अशनने कोण जसे ॥ ।। प्रनु० ॥ २ ॥ जे तुम आण लिहूणा मानव, मो ह नृपतिने केम दमे ॥ प्रनु० ॥३॥ जे नुऊ पद पंकजनें न सेवे, तेह अनंत संसार जमे ॥ प्रन० ॥ ॥४॥ जे तुफ पूजे नाव धरी तस, नव नव संचि त पुरित शमे ॥प्रनु० ॥ ५॥ करुणा सागर तुक विण दूजो, मुफ अपराधने कोण खमे ॥ प्रनु० ॥ ॥ ६ ॥ ध्याने ध्यावे जे कोई तुऊने, अमृत पदमां ते रंगें रमे ॥ प्रनु० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥अथ नेमिजिन स्तवनं ॥राग काफी॥ ॥नां करीये रे नेडो नां करीयें, निगुणागुंरे नेडो नां करियें ॥ अमें रोइ रोइ अांखडीमां नीर जरीयें जी ॥ निगुणा ॥ प्रेम निरव हि वाल्हा प्रेमी जननो, अविचाऱ्या नवि मग जरीयें जी ॥ ॥ निगुणा ॥१॥ जादव जान सजीने यउपति, तोरण आवीने केम फरिये जी ॥ निगुणा० ॥ २ ॥ संयम नारी वाल्हे कीधी प्यारी, राजुल मूकी नर दरीयें जी ॥ निगुणा ॥३॥ अम अबलानी सा हामुं निरखो, विरह जलधिथी केम तरी जी ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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