SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३) ताचं रे॥सहस॥॥कीर्तिसागर कहे जव जव तोरी, मोज महिर नित पानं रे॥ सहस ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥अथ समेतशिखरस्तवनं ॥ ॥ चालो चालो शिखरगिरि जयें रे ॥ चा० ॥ वीश जिणंद मुगतें गया ॥ चा० ॥ ए अांकणी॥पा लगंजमें सफल बोलाइ, मधुबनमें जश् रहिये रे ॥ वीश जिणंद ॥१॥ आठ मंदिर है श्वेतांबरका, ती न दिगम्बरी लहियें रे॥वी॥सीतानाले निर्मल थश्नें, केशर प्याला ग्रहीये रे ॥वी ॥२॥ विपम पाहाड की कुंज गलनमें, शीतलता बदु लहिये रे ॥ वी० ॥ पश्चिम भाउ पूर्वदिशि बारे,वीश टुंक जिन पद लहियें रे॥ वी० ॥३॥ शामलीया पारसको मंदिर, बिच शिख रपर सोहिये रे ॥ वी॥वीश-ट्रंके जिन पूजन करकें, नरजव लाहो तहियें रे॥ वी० ॥ ४ ॥ उगणीशे गी यारा माहावदि, एकादशी विधु कहीयें रे ।। वी० ॥ संघ सहित यात्रा नइ सफली, विनय नमत गुण गहि ये रे ॥ वी० ॥ ५ ॥ इति शिखरजीनी॥ ॥ अथ श्रीशजयस्तवनं ॥ घोलनी देशीमां॥ ॥ शत्रुजे जश्य ने पावन थश्य, यात्रा नवाणुं क रिये रे ॥ चालो शेजेजे जयें ॥ ए अांकणी ॥डूंगर चडतां ने हरखज धरतां,जश्ने गंजारामां रहिये रे ॥ चालो ॥१॥ सूरज कुंझमां देह पखाली, नाइने नि मल थये रे ॥ चालो॥नीमज कुंममां कलशज नरि यें, सोनानी शिरियें वधावो रे॥ चालो० ॥॥पाना
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy