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________________ (२७) ॥ ३ ॥ प्रचुजी सादि अनंतें थिर रह्या, एक तिहां अ अनेक हो ॥ अ॥ प्रनुजी लोकांतें आदि अ लोकने, एहवो तिहां विवेक हो ॥ अ० ॥ प्र० ॥ ॥ ४ ॥ प्रनुजी तिहां अपूर्व आनंद लहे, वचन अगोचर जेह हो ॥ अ० ॥ प्रभुजी सिम स्वरूपनी वानगी, गुरू श्रमाने जाणो तेह हो ॥०॥॥ ॥ ५॥ प्रनुजी दर्शन लदी जिन देवर्नु, नावो एहि ज नाव हो ॥ अ० ॥ प्रनुजी एहिज नाव अनुसरी, नवजल तरवा नाव हो ॥ अ० ॥ प्र० ॥ ६ ॥ प्रनु जी एहिज ध्याने नित रही, चाहीयें शिव सुख राज हो ॥ अ॥प्रनुजी श्रीजय जिनवर ध्यानथी, नाय क अनुनव काज हो ॥ अ० ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीमहावीर जिन स्तवनं ॥ गिरूवा रे ॥ गुण तुम तणा ॥ ए देशी ॥ ॥ वंदो महावीर जिनेसर राया, माता त्रिशला राणीना जाया रे ॥ हरिलंडन कंचन वर काया, अ मर वधू दुलराया रे ॥ वंदो० ॥ १ ॥ बालपणे सु रगिरि मोलाया, अहि वेताल हराया रे ॥ इंश कहे व्याकरण निपाया, पंमित विस्मय पाया रे ॥ वंदो ॥ २ ॥ दायिक ऋदि अनंती पाया, अतिशय अधि क सुहाया रे ॥ चार रूप करि धर्म बताया, चनवि ह सुर गुण गाया रे ॥ वंदो० ॥३॥त्रीश वरस गृ हवासे रहिया, संयमगुं दिल लाया रे ॥ बार वरस तपि कर्म खपाया, केवलनाण नपाया रे ॥ वंदो०
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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