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________________ ( २६० ) एहि विनति अवधारो रे || जि० ॥ तूं हि० ॥ ३ ॥ ॥ अथ सिद्धाचल स्तवनं ॥ ॥ सिद्धाचल वंदोरे नर नारी, हांरे नरनारी हो नर नारी, सिद्धाचल वंदो रे नर नारी ॥ नानिराया मरु देवा नंदन, कूपनदेव सुखकारी ॥ सि० ॥ १ ॥ पुंमरिक पमुहा मुनिवर सीधा, आत्मतत्त्व विचारी ॥ सि० ॥ २ ॥ शिवसुखकारण नवडुख वारण, त्रिवन जग हितकारी ॥ सि० ॥ ३ ॥ समकित शुद्ध कर ए तीरथ, मोह मिथ्यात निवारी ॥ सि० ॥ ४ ॥ ज्ञान नद्योत प्रह केवल धारी, नक्ति करुं एक तारी ॥ सि० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ केशरीयाजीनुं स्तवन ॥ ॥ नमरो उमेरे रंग मोहोनमांरे ॥ ए देशी ॥ श्रा ज सफल दिन माहरो रे, वांद्यां श्री धूलेवा राय रे ॥ केशरी योजी नेटियो रे || मेवाड वागड विच्चें शो तो रे, बावन जिनालो प्रासाद रे || के० ॥ १ ॥ मे रु सम उत्तंग देहरो रे, कोरणी प्रतिदि श्रीकार रे ॥ के० ॥ यं यंने शोने पूतली रे, जालीयें देव विमान रे ॥ ० ॥ २ ॥ सुवर्णनो दंग कलश बे रे, रूप्प कपाट जोडि दोय रे || के० ॥ रत्नें जडित सुवर्ण अंगिका रे, तेजें ऊलामल जाए रे ॥ के० ॥ ॥ ३ ॥ प्रभुजोनी मूरति मोहनी रे, तृप्ति न पामे नय ए रे ॥ के० ॥ महिमावंत मोहोटा तुमें रे, जग सदु नमे जस, पाय रे ॥ के० ॥ ४ ॥ नित पूजे प्रभु नाव
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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