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( २५६) देखी मारो मन हीसे राज ॥ ए आंकणी ॥ माता वामादेवि जायो पुत्र रतन, जेणें नाग नागणीना कीधांडे जतन ॥ मोरा० ॥ प्रनु० ॥१॥ कमठनो मद गाल्यो वाले कीधारुडां काज, कलिकालमांहे जेनो परतो वे आज ॥ मो० ॥ मारग नूलाने वालो आपे ने साद, वली यापे संपदाने टाले विषवाद ॥ मो० ॥ प्रनु० ॥ २ ॥ वेडीयो कापेने वालो तारे जिहा ज, समस्यां आपे वालो दंडित काज ॥मो० ॥ देशी विदेशी आवे संघ अनेक, सुथरीमा वास कीधो राखी वाले टेक ॥ मो० ॥ प्रनु० ॥ ३ ॥ मोणसी अंचल जीनुं जात्रानुं मन. संघ लाग्ने आव्या सुथरी प्रसन्न ॥ मो० ॥ संवत अढार बेधासीये जाण, फागुण वदि चोथे गायो गुणखाण । मो० ॥ प्रनु० ॥ ४ ॥ नेट्या श्री घृत कनोल जिनराज, पूजा सत्तर नेदी करे शुन काज ॥ मो० ॥ मेघ शेखर गुरुना सुपसाय, शिष्य गुलाब शेखर गुण गाय॥ मो॥प्रनु०॥इति॥
॥ अथ षनजिन स्तवनं ॥ ॥ आज नजम डे रे अधिको, जोवा दरिसणा दीसरको ॥ ते मुने लागे रे मीतुं, प्रनुजीनुं ज्यारें द रिसण दी ॥ आज ॥ केशर चंदन रे लीजें, घसी करी जिनजीनी पूजा कीजें ॥आज ॥१॥ पूजानां फल रे रूडां, तेहथी आठ कर्म खपे कूडां ॥ नावें नावना रे जावो, वली प्रनुना गुण रंगें गावो ॥ आज ॥२॥ बाजूनी आंगीनो रे लटको,