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________________ (२४६) त्यागी॥दो जिनराया जिनेसर, शिव वधूना'तमें नो गी। एयांकणी॥१॥ वंडित पूरण चिंता चूरण.मन शु 5 समरे लोगी ॥ राग इष टाली कर्मने गाली, शिव पंथें थया योगी॥ हो ॥२॥ नविजन नावें यात्रा आवे,प्रणमे लती पाय लागी॥ नवि पर मेहेरें करणा लेहेरें, जाग्य दशा जस जागी ॥ हो ॥३॥ सुथरी गामें वसे गुन गमें तस चरणांघुज रागी । मेघ लान कहे प्रनु घृत कनोलजीने, नामें नवनिधि जागी॥ हो० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥अथ प्रनानि स्तवनं ॥ ॥ राग रामकली ॥ अजब ज्योति मेरे. जिनकी, तुम देखो माई ॥अजव ज्योति ॥ ए टेक ॥ कोडी सूरज जब एकता कीजें, होड न.आवे मेरे जिनकी ।। तुम दे० ॥ १ ॥ जगमग ज्योति फलामल फलके, काया नील वरणकी। तुम दे॥॥ हीर विजय प्रनु पास शंखेश्वर, आशा पूरो मेरे मनकी॥तुम दे॥३॥ ॥अथ प्रनाति स्तवनं ॥ ॥ राग वेलावल ॥ जब तुम नाथ निरंजना, तब में नक्त तुमारो ॥ कल्पद जब तुम नए, युगला धर्म हमारो ॥ जब तु० ॥ ॥ जब तुम सायर साहि वा, तब ढुं सरिता समाना ॥ तुं दाता हूं याचका, बोले बिरुदिवाना॥जब तु० ॥ २ ॥ तुं तीरथ महिमा वडो, तब हुँ यात्रा हो आयो ॥ तुं हीरो मेरे कर चड्यो, तो हूं जवेरी कहायो । जब तु० ॥ ३ ॥ जब
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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