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________________ - (२३ए) नायक हितकामी ॥ २७ ॥ करुणाकर ठाकुर तुं म हारो, निशिवासर नाम जपु ताहारो ॥ सेवकां पर म कृपा करजो, वालेसर वंबित फल देजो ॥ २ ॥ जिनराज सदा तुं जयकारी, तुज मूर्ति अति मोहन गारी ॥ गुर्जर जनपदमाहे राजे, त्रिनुवन ठकुराई तुझ बाजे ॥ २ए श्म नाव नले जिनवर गायो, वामासुत देखी बहु सुख पायो ॥ रवि मुनि शशि संवबर रंगें, जयदेवसूरमां सुख संगें ॥ ३० ॥ जय शंखपुरानिध पार्श्व प्रनो, सकलार्थ समीहित देहि विनो ॥ बुध हर्षरुचि विजयाय मुदा, तप लब्धि रुचि सुख दाय सदा ॥ ३१ ॥ कलश ॥ श्वं स्तुतः सकलकामितसिदिदाता, यदाधिराजनतशंखपुराधि राजः ॥ स्वस्ति श्रीहर्षरुचिपंकजसुप्रसादात्, शिष्येण लब्धरुचिनेति मुदा प्रसन्नः ॥ ३२ ॥ इति पाई ॥ ॥अभ मेघ कुमारनी ससाय प्रारंजः ॥ ॥ धारणी मनावे रे मेघकुमारने रे, तुं मुफ ए कज पुत्त ॥ तुऊ विण सुनां रे मंदिर मालियां रे, राखो राखो घर तणां सूत ॥ धारणी॥ १ ॥ तुमने परणावू रे आठ कुमारिका रे, सुंदर अति सुकुमा ल ॥ मलपति चाले रे वन जेम हाथणी रे, नयण वयण सुविशाल ॥धारणी० ॥ ॥ मुज मन आशा रे पुत्र हती घणी रे, रमाडीश वढूनां रे बाल ॥ देव अटारो रे देखी नवि शक्यो रे, उपायो एह जंजाल ॥ धारणी ॥३॥ धण कण कंचन रेशमि
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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