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________________ (२३०) कस्यो मे काल के नाणेजो आणी घरे, काजलशा हो करे चैत्यनी चाल के ॥ धन ॥ ५ ॥ रंग मंम्प रचना बनी, अति कंचा हो थंन नामोठाम के ॥ कोमें करावे कोरणी, वित्त वावरी हो थिर कीg डे नाम के ॥ धन ॥ ६ ॥ वली रे महाजनना सहा यगुं, मेघना हो सुत च तवे काम के ॥ मुख्य मंझप शुन मांझणी, करी जिनहर हो बो बंध अनिराम के धन ॥ ॥ चोवीशवट्टो पंचाणुए. तेणे थाप्यो हो आगल रही जेह के ।। चोवीश गोत्रनी देहरी, महा जननी हो फरती ने तेह के ॥ धन ॥ ७ ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥धणर ढोला॥ ए देशी ॥ ॥णी परें वः बेतुने रें, मांहो मांहे विवाद ॥ गिरुन घोडी ॥ घोडी गाजेजी जिणंद, तेजें दीपे जी दिणंद, जग महिमा अगम अपार ॥ गिरु० ॥ ए अांकणी ॥ पण सरखा राखे प्रनु रे, वधवा न दीए विपवाद ॥ गिरु ॥ १ ॥ बनेवी महोटो हशे रे, ए पूजक प्राय ॥ गिरु० ॥ मेघानां संतत हजी रे, ते एवं गोठी कहेवाय ॥ गिरु० ॥२॥ शिखर दंम वडी ध्व जा रे, चढतां करे रे कलेश ॥ गिरु० ॥ आज लगें बे एहने रे, श्म बहु वचन विशेष ॥ गिरु० ॥ ३ ॥ अंगुली बांधी एकठी रे, पूजन लीजें कदाप ॥ गिरु०॥ ठाकुर ले नही मूंमर्छ रे, ए बिछर्नु अद्याप ॥ गिरु० ॥ ॥ ४॥ उदयवंत अति कजला रे, विधिपद श्रावक वेह ॥ गिरु० ॥ तेखदार दिल दोलती रे, प्रनुजीगुं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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