SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ () सारी ॥ पण पसताले तुरक जयें, प्रतिमा नंमारी॥ मलक महाबल दुसन खान, कीधो उतारो ॥ पांशवे तेणें नाम जोर, गुजराती वारो ॥ ५ ॥ तरल तुरंग किशोर असुर, करता हय हणता ॥ केश एराकी नबलंत, खुरीयें । खणता ॥ बांधण त्यांहि घोडार मांहि, खीसी खोसंतां ॥ प्रगट थया तिहां पास विं ब, सुख दायक संता ॥ ६ ॥ विजमत गार नफर फजर, नजरें गुजरावे। हो खुशाल निहाल मलक, या कोण कहेलावे ॥ बान पडिल कोइ वणिक सु ता, तसुदुरम नणे इम ॥कीजें इसकू दंमव्रत, सदा ताजिम दाजिम ॥ ७ ॥ यद मजबूत बहुत कोत, हे नूत हिंङका ॥ धरिये इस शिर जाफरान, सिंदलका जूका ॥णी परें रहेतां तेणे. ठामें, वोहोड्या दिन के ॥ सिंतेरे जे वात दुइ, सुगजो मन दे ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ चूनडीनी देशीमां ॥ ॥णे अवसरें पुर पारकरें, राणो खंगार राजान रे ॥ तेहने दरबारें दीपतो, संघवी काजल परधान रे ॥णे ॥१॥ तस बन्हेवी निज कुलतिलो, देवा वंद शा बेदयाल रे॥ मेघो खेताउत पाटणे, व्यापार करे धूताल रे ॥णे ॥ २ ॥ सुपनंतर सुर कहें शाहने, छे म्लेव महोल जिनबिंब रे ॥ तस दाम सवासो देश्ने, लेजो म करजो विलंब रे॥णे॥३॥ प्रतिमा ले आवे गुरु कन्हे, जोइ कहे श्रीमेरुतुंग रे॥ तुम देशे ए अति अतिशयी,तीरथ थाशे उत्तंग रे
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy