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________________ (१७) थाये, अनल अति शीतल करे ॥ माप थाए फूल माला, लही घर पाणी नरे ॥ परनारी परिहरी शि यल मन धरी, मुक्ति वधू हेला वरे ॥ ए ॥ चाल । ते माटे हुँ रे, वालम वीनतुं ॥ पाय लागीने रे, म धुर वयणें स्तवं ॥ नथलो ॥ वयण महारुं मानीयें, परनारीथी रहो वेगला ॥ अपवाद माथे चढे मोहो टा, नरकें थश्य दोहिला ॥ धन्य धन्य ते नर नारी जे जग, शियल पाले कुलतिलो, ते पामशे यश लगत मांही, कुमुदचंद सम ऊजलो ॥ १० ॥ इति ॥ ॥अथ शियलविषे नारीने शीखामनी सद्याय ।। ॥चाल ।। एक अनोपम, शीखामण वरी ॥ सम जी लेजो रे, सघली सुंदर । नथलो ।। सुंदरी सहेजें हृदय हेजें, पर सेजें नवि वेसी ॥ चित्तथकी चूकी ताज मूकी, पर मंदिर नवि पेसीयें ॥ बहु घेर हीमी नार निर्लज, शास्त्रे पण तजवी कही ॥जेम प्रेत दृष्ठं पड्युं जोजन, जमवू ते जुगतुं नही ॥ १ ॥ चाल । परशुं प्रेमें रे, हसीय न बोलीयें ॥ दांत देखाडी रे, गुह्य न खोलीयें ॥ नुथलो ॥ गुह्य घरनुं परनी आगे, कहोने केम प्रकाशीयें ॥ वली वात जे विपरीत ना से, तेहथी दूरें नाशीयें ॥ असुर सवारा अने अगो चर, एकलां नवि जायें ॥ सहसातकारें काम कर तां, सहेजें शियल गमावीयें ॥ २ ॥ चाल ॥ नट विट नरगुं रे, नयण न जोडीयें ॥ मारग जातां रे, आधु बुढीयें। मथलो ॥ आधु ते उढी वात करतां,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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