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________________ (२०६) उलग कीजें रे ॥ रूपविबुधनो मोहन पनणे. चरणनी सेवा दीजें रे ॥ सांइं० ॥ ७ ॥ इति शंखेश्वर ॥ ॥ अथ गौतम प्रनातिस्तवनं ॥ प्रारंजः ॥ ॥राग प्रजाती॥ मात पृथ्वीसुत प्रात ऊठी नमो, गणधर गौतम नाम गेलें ॥प्रह समे प्रेमगुंजेह ध्या तां सदा, चढती कला होय वंशवेले ॥ मा० ॥१॥ वसुनूति नंदन विश्वजन वंदन, उरित निकंदन नाम जेहन ॥ अनेद करी नविजन जे नजे, पूर्ण पोहोंचे सही नाग्य तेहy ॥ मा० ॥ ॥ सुरमणि जेह चिंतामणि सुरतरु, कामित पूरण कामधेनु । एहज गौतमतणुं ध्यान दयें धरो, जेहथर्की अधि क नहीं माहात्म्य केहेनुं ! मा० ॥३॥झान बन तेज ने सकल सुखसंपदा, गौतमनामथी सिदि पामे ॥ अखंम प्रचंग प्रताप होय अवनिमां, सुर नर जेह में शीश नामे ॥ मा० ॥४॥ प्रणव या घरी माया बीजें करी, स्वमुखें गौतमनाम ध्याये ॥ कोडि मनका मना सफल वेगें फले, विघन वैरी सवे दूर जाये ॥ मा० ॥ ५ ॥ उष्ट दूरेंटले स्वजन मेलो मले, प्राधि उपाधि ने व्याधि नासे॥ नूतनां प्रेतनां जोर नांजे व ली, गौतमनाम जपतां नन्नासें ॥ मा० ॥ ६ ॥ तीर्थ अष्टापदें आप लब्धं जश,पन्नरशें त्रए ने दिरक दीधी। अहम पारणे तापस कारणें, दीरलब्धे करी अखु ट कीधी ॥ मा० ॥ ७ ॥ वरस पच्चास लगे गृहवासें वस्या, वरस वली त्रीश करी वीरसेवा ॥ बार वरसां
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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