SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२००) कांश तरयुंजवनो पार रे ॥३०॥७॥ वईमान मु ज वीनति रे, कांई मानेजो निशदीस रे ॥ प्र० ॥ मोहन कहे मनमंदिरें रे, कांश वसियो तुं विशवावी श रे ॥ प्र० ॥ ८ ॥ इति श्री मोहनविजजीकृत चोवीशी आदिकना स्तवनं संपूर्ण ॥ ॥अथ अति जिन स्तवनं ॥ ॥ प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदा, कांड प्रनु पाखे कण एके मन न सुहाय जो ॥ ध्याननी ताली रे लागी नेहरुं, जलद घटा जिम शिवसुतवाहन दाय जो ॥ प्रो० ॥ १ ॥ नेह घेयूँ मन माहारुं रे प्रनु अलजे रहे, तन धन मन ए कारगथीप्रनु मुफ जो॥ मारे तो आधार रे साहिब रावालो, अंतर्गतनुं प्रनु पागल कहुँ गुरु जो ॥जी॥॥ साहेब ते साचो रे जगमां जाणीएं.सेवकनां जे सहेजें सधारे काज जो॥ एहवे रे आचरणे किम करीने रहूं, बिरुद तुमारो ता रण तरण जिहाज जो॥प्री० ॥ ३ ॥ तारकता तुक माहे रे श्रवणें सांजली, ते जणी हुँ आयो दीन दयाल जो ॥ तुज करुणानी लेहरे रे मुफ कारज सरे, शुं घणुं कहीएं जाण आगल कपाल जो॥प्री० ॥४॥ करुणादिक कीधी रे सेवक नपरें, नव जय नावट नांगी नक्ति प्रसन्न जोमन वंबित फलियां रे जिन या लंबने,कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो॥जी॥५॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy